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माँ के आँसु बने बेटी की ताकत

डायरी जो माँ की अधूरी कहानी को पूरा करती है। 

वह लड़की हमेशा मुस्कुराने वाली, चहकती हुई सी थी। उसके सारे सपने पूरे होते जा रहे थे। उस लड़की का नाम था पायल। वह शुरू से ही अपनी माँ रमा के बहुत क़रीब रही थी। अपनी माँ से प्यारी–प्यारी बातें करना, उनके साथ समय बिताना, जगह-जगह घूमने जाना — ये सब उसे बेहद पसंद था।

रमा का स्वभाव बहुत शांत और स्नेही था। पायल ने उन्हें हमेशा एक संयमित और स्नेहिल माँ के रूप में देखा। रमा कभी पायल को किसी काम के लिए मना नहीं करती थीं, और पायल भी हमेशा ऐसा ही व्यवहार करती थी जिससे माँ को कभी दुख न पहुँचे।

रमा एक गृहिणी थीं। हर सुबह वे घर के काम निपटाकर अपनी बेटी के लिए नाश्ता बनातीं, और जब पायल कॉलेज जाती तो उसके गालों पर प्यार से किस करती और कहती —
“अपना ध्यान रखना, माँ।”

पायल मुस्कुराकर कॉलेज चली जाती।

फिर रमा घर के सारे काम निपटाने के बाद अपनी डायरी निकालतीं। बिस्तर पर बैठकर बड़े ध्यान से, धीरे–धीरे कुछ लिखा करतीं। ऐसा लगता जैसे वे लिखते समय किसी गहरी सोच में खो जाती हैं। उनकी आँखें भीगी रहतीं — जैसे वे अपने दिल का सारा दर्द उन्हीं पन्नों पर उतार रही हों।

दरअसल, रमा उस डायरी में अपनी ज़िंदगी लिख रही थीं —
अपना बचपन, अपने सपने, अपनी अधूरी इच्छाएँ, और अपनी बेटी को देने की चाहत भरी एक अच्छी ज़िंदगी की कहानी।

रमा ने लिखा था कि वे बचपन से बहुत शांत और समझदार थीं। माँ–पिता के देहांत के बाद उन्होंने अपने छोटे भाई–बहनों की जिम्मेदारी उठाई। पिता का छोटा–सा कारोबार चलाने में हाथ बँटाया और अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ दी।

वे खुद तो पढ़ न सकीं, पर अपने भाई–बहनों को पढ़ाया–लिखाया। वे स्कूल में बहुत होशियार और ईमानदार छात्रा थीं, साथ ही सुंदर कविताएँ भी लिखा करती थीं।

कुछ साल बाद उनके पिता ने उनकी शादी रामानुजन नाम के व्यक्ति से कर दी। पर उनके बीच कोई गहरी समझ या आत्मीयता नहीं थी।
रमा घर पर रहकर सिलाई–कढ़ाई किया करतीं, अपने मन को बहलाने के लिए।

वे खुद की पहचान बनाना चाहती थीं, पर पति ने हमेशा यही कहा —
“तुम्हें घर पर ही रहना है, बाहर जाकर काम नहीं करना।”

रमा ने बहुत बार महसूस किया कि वे अकेली हैं — एक ऐसे घर में जहाँ उनका कोई हमदर्द नहीं।

फिर जब पायल का जन्म हुआ, तो रमा की ज़िंदगी जैसे रोशनी से भर गई। लेकिन रामानुजन हमेशा एक बेटा चाहते थे, इसलिए उन्होंने कभी पायल से सच्चा स्नेह नहीं किया।

रमा ने अपने हाथों की कमाई से जो कुछ भी कर सकती थीं, सब कुछ अपनी बेटी की खुशियों के लिए किया — अच्छे कपड़े, स्वादिष्ट खाना, पढ़ाई का ध्यान।
पायल को अपने पिता से डर लगता, लेकिन माँ के साथ रहते ही उसका सारा डर गायब हो जाता।

रमा ने अपनी डायरी में लिखा था —

 “मैं अपनी बेटी को वो हर खुशी दूँगी, जिसकी वो हक़दार है।
मैं चाहती हूँ कि वो एक समझदार, स्वतंत्र और आत्मविश्वासी इंसान बने —
जो कभी किसी के सामने झुके नहीं, और सच्चाई के साथ आगे बढ़े।”



रमा हमेशा कहा करतीं —
“ज़िंदगी में कितनी भी मुश्किलें आएँ, कभी हार मत मानना, और अपने कदम कभी रुकने मत देना।”

हर जन्मदिन पर वे अपनी बेटी के लिए कोई छोटा–सा तोहफ़ा लातीं, और जब पायल वो तोहफ़ा पाती, तो माँ को गले लगाकर कहती —
“आई लव यू, माँ।”

माँ और बेटी का रिश्ता सच्चे दोस्त जैसा था।

फिर एक दिन पायल के पिता की बीमारी से मृत्यु हो गई। उसके बाद माँ–बेटी एक-दूसरे का सहारा बनकर साथ रहने लगीं।

एक दिन जब पायल घर पर अकेली थी, तो उसे अलमारी के नीचे छिपी एक पुरानी डायरी मिली। उसने उसे खोलकर पढ़ना शुरू किया — और हर पन्ने के साथ उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।

उसे तब समझ आया कि उसकी माँ के मन में कितना दर्द था, जो उन्होंने कभी ज़ाहिर नहीं किया। उन्होंने अपना सारा दुख, अपने सपने — सब कुछ अपनी बेटी की मुस्कान में समर्पित कर दिया था।

अब पायल 26 साल की हो चुकी थी। वह भारत की एक शीर्ष कंपनी की CEO थी।
एक दिन जब उसे “बेस्ट CEO अवॉर्ड” से सम्मानित किया गया, तो उसने मंच पर जाकर कहा —

“यह अवॉर्ड असली हक़दार मेरी माँ हैं।
अगर आज मैं यहाँ खड़ी हूँ, तो सिर्फ़ उनकी वजह से।”



और उसने वो ट्रॉफ़ी जाकर अपनी माँ के हाथों में रख दी।

आज रमा खुद एक काउंसलर बन चुकी हैं। लोग उनसे अपने घर की परेशानियाँ लेकर आते हैं — और वे उन्हें सिखाती हैं कि परिवार में एक-दूसरे का साथ कैसे निभाया जाए।

पायल के पास अब अपना बड़ा घर है, अपनी गाड़ी है, लेकिन उसने कभी अपनी माँ को “माँ” नहीं — बल्कि “घर की मालकिन” कहा।

रमा मुस्कुराकर अपनी बेटी को देखती हैं —
और समझती हैं कि उसकी हर प्रार्थना अब पूरी हो चुकी है।

© Ankita Parkhad, 2025. All rights reserved.







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